36 साल में पहली बार अहमद पटेल के बिना चुनाव लड़ रही कांग्रेस

1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अहमद पटेल को अपना राजनीतिक सचिव बनाया था। इसके बाद वर्षों तक उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के लिए भी यही भूमिका निभाई। वह कांग्रेस की चुनावी रणनीतियों और महत्वपूर्ण निर्णय लेने की प्रक्रियाओं का हिस्सा हुआ करते थे। हाल ही में कोरोना महामारी ने कांग्रेस पार्टी से एक कद्दावर नेता छीन लिया। वर्षों के बाद पार्टी उनकी गैरमौजूदगी में चुनावी रणनीति बना रही है।

आपको बता दें कि सुर्खियों से दूर रहने वाले अहमद पटेल का निधन 25 नवंबर, 2020 को दिल्ली के एक अस्पताल में हो गया।कांग्रेस पार्टी 36 साल में पहली बार दिल्ली के 24, मुख्यालय अकबर रोड स्थित केंद्रीय पार्टी मुख्यालय में उनके बिना महत्वपूर्ण चुनाव का सामना कर रही है।

अहमद पटेल के कांग्रेस पार्टी में युवा रणनीतिकारों की एक नई श्रृंखला सामने उभरकर आई है। कांग्रेस के इस नुयग को बीते साल “पत्र विवाद” का भी सामना करना पड़ा है। कांग्रेस के 23 वरिष्ठ नेताओं के इस समूह को हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में G23 के रूप में पुकारा था। आपको बता दें कि इन नेताओं ने पार्टी में व्यापक बदलाव की मांग की थी।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री 59 वर्षीय भूपेश बघेल और पूर्व केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह (49) इस साल असम चुनाव की कमान संभाल रहे हैं। पार्टी के पदाधिकारियों का दावा है कि इस टीम ने आलाकमान से कोई महत्वपूर्ण हस्तक्षेप के बिना गठबंधन सहित पूरी चुनावी रणनीति को संभाला है।

कांग्रेस ने राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत को केरल भेजा। उससे पहले, पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल और रणदीप सुरजेवाला तमिलनाडु में सीट शेयरिंग को लकेर बातचीत के लिए दूत बनकर पहुंचे थे।

कांग्रेस में मुकुल वासनिक, पृथ्वीराज चव्हाण या बीके हरिप्रसाद जैसे चुनाव पर्यवेक्षक हैं। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “अगर अहमद पटेल जिंदा होते, तो दिल्ली का 15, गुरुद्वारा रकाबगंज रोड चुनावी रणनीतियों का केंद्र होता। यहां, तीन में से एक कार्यालय उनके लिए समर्पित था।”

पिछले चुनावों में अहमद पटेल कांग्रेस के वॉर रूम में उपस्थिति रहते थे। यहां वह रणनीतिकारों से मुलाकात करते थे। स्थिति का जायजा लेते थे। चुनौतियों की पहचान करना हो या फिर चुनाव के लिए जरूरी फंड के महत्वपूर्ण मुद्दे को संभालना, अमहद पटेल इसे बड़े आराम से संभाला करते थे। अब स्थिति बदल चुकी है। एक अन्य नेता ने कहा, “चुनावी योजनाएं अब राज्य स्तर पर बनने लगे हैं। नए और युवा लोगों ने जिम्मेदारी ली है।”

निश्चित रूप से, इसका मतलब यह नहीं है कि नए रणनीतिकार ऑटो-पायलट मोड पर हैं। पार्टी का कमान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी के हाथों में है। पिछले महीने, जब द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) और कांग्रेस के बीच तमिलनाडु में सीट शेयरिंग पर वार्ता हुई, तो सोनिया गांधी ने ही डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन को समझौते को अंतिम रूप देने के लिए दिल्ली बुलाया। उनके विश्वासपात्रों में से एक के अनुसार, वह अभी भी कई मुद्दों का फैसला करती हैं। इनमें राज्यसभा के लिए उम्मीदवार चयन करना और गठबंधन के सहयोगियों से बात करना शामिल है।

दोनों वरिष्ठ नेताओं के अनुसार, सोनिया गांधी को अहमद पटेल की असामयिक मृत्यु के बाद अभी तक उनका विकल्प नहीं मिला है। आपको बता दें कि अहमद पटेल उनकी उनकी आंखें और कान हुआ करते थे। उन्होंने हर मुश्किल से पार्टी को बाहर निकाला।