कोरोना महामारी ने यूनिवर्सिटी परीक्षाओं पर लगाया ‘ग्रहण’ छात्र रहे परेशान और लेट हुआ सत्र

साल 2020 में आई कोविड महामारी ने लोगों को जिंदगियों पर बहुत बुरा प्रभाव डाला है। इस महामारी की मार ऐसी है कि शायद लोग ताउम्र भी न भूल पाएं। वहीं अगर बात शिक्षा जगत में कोराना का असर की जाए तो यहां भी जख्म बड़े गहरे हैं। इस बीमारी की वजह से न जानें कितने लोगों की नौकरियां गई तों वहीं कितनी परीक्षाएं अटक गईं। देश के तमाम राज्यों ने यूनिवर्सिटी की परीक्षाएं टाली दीं हैं। इसका खामियाजा यह हुआ कि सत्र लेट हो गया है और इसके साथ-साथ छात्र भी असमंजस में रहे।

डीयू, मुंबई, हरियाणा सहित अन्य राज्यों ने की परीक्षाएं स्थगित

देश के बढ़ते प्रकोप के कारण दिल्ली, मुंबई, हरियाणा, पंजाब, बंगाल, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, लखनऊ, गोरखपुर, राजस्थान,ओडिशा, गोवा मध्यप्रदेश, सहित देश के तमाम राज्यों की यूनिवर्सिटी ने यूजी, पीजी सहित प्रोफेशनल परीक्षाएं स्थगित कर दी थीं।

हालात सुधरने का हुआ इंतजार

फरवरी-मार्च में होने वाली यूनिवर्सिटी की परीक्षाएं स्थगित होने के साथ ही देश भर में लॉकडाउन लगा दिया गया था। मार्च में पहले चरण के राष्ट्रव्यापी बंद होने के साथ यह कई चरणों तक चला। इसके बाद देश भर में कोरोना के केसेज कम होने और हालात ठीक होने का इंतजार किया गया। हालांकि अनलॉक प्रक्रिया शुरू होने के बाद भी परीक्षाएं नहीं शुरू हो सकीं थीं।

फाइनल ईयर की परीक्षाएं पर छिड़ी बहस

जुलाई-अगस्त तक देश भर में कोरोना केसेज की संख्या में लगातार इजाफा होने की वजह से परीक्षाओं का शेड्यूल जारी नहीं किया जा सका। इसके बाद दिल्ली, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश सहित कुछ राज्यों ने अंतिम वर्ष की परीक्षाओं को रद्द कर दिया था, लेकिन UGC का कहना था कि अंतिम वर्ष की परीक्षाओं के किए बिना ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन वाले छात्रों को डिग्री नहीं दी जा सकती।

छात्रों ने दायर की याचिका

UGC के परीक्षा कराने के फैसले के विरोध में देश भर के अलग-अलग हिस्सों से छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। छात्रों का कहना था कि इसमें अंतिम वर्ष या अंतिम सेमेस्टर के छात्रों की परीक्षाओं को रद्द करने की मांग की गई थी। इसके साथ ही याचिका में छात्रों को आंतरिक मूल्यांकन और पिछले वर्ष की परीक्षाओं में उनके प्रदर्शन के आधार पर प्रमोट करने की मांग भी की गई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- फाइनल परीक्षा के बिना डिग्री नहीं

छात्रों की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि बिना परीक्षा के स्टूडेंट्स को प्रमोट करना सही नहीं है। न्यायालय ने यूजीसी के सर्कुलर और अंतिम वर्ष की परीक्षाएं रद्द करने की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि इसके तहत अंतिम वर्ष के छात्रों को बिना परीक्षा के प्रमोट नहीं किया जाएगा। वहीं परीक्षाएं 30 सितंबर तक आयोजित कराने का निर्देश दिया गया था।

DU, JNU और MU के टीचर्स ने किया फाइनल परीक्षाओं का किया था विरोध

कोविड-19 संक्रमण के दौर में परीक्षाएं कराने को लेकर काफी विवाद हुआ था। दिल्ली यूनिवर्सिटी से लेकर जेएनयू और मुंबई यूनिवर्सिटी के टीचर्स ने फाइनल ईयर की परीक्षाएं आयोजित कराने पर घमासान मचा दिया था। इस बार दिल्ली यूनिवर्सिटी, मुंबई यूनिवर्सिटी और जेएनयू के शिक्षकों ने यूजीसी के चेयरमैन को पत्र लिखकर परीक्षाएं रद्द करने का आग्रह किया था। शिक्षकों का कहना था कि कोविड-19 प्रकोप के मद्देनजर पिछले प्रदर्शन के आधार पर स्टूडेंट्स को प्रमोट कर दिया जाए। वहीं इस बारे में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के पूर्व अध्यक्ष सुखदेव थोराट और विभिन्न विश्वविद्यालयों के 27 अन्य शिक्षकों ने यूजीसी के अध्यक्ष को पत्र लिखा था।

ऑनलाइन परीक्षाओं के विरोध में सामने आए थे छात्र

कोविड-19 संक्रमण के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए यूजीसी ने फाइनल ईयर की परीक्षाएं ऑनलाइन कराने के निर्देश दिए थे। यूजीसी के इस फैसले के बाद से ही विवाद खड़ा हो गया। स्टूडेंट्स का कहना था कि पिछले सालों के प्रदर्शन, असाइनमेंट और प्रोजेक्ट के आधार पर अंतिम वर्ष या सेमेस्टर का मूल्यांकन करना चाहिए ताकि कोरोना महामारी के दौरान उन पर परीक्षा का दबाव ना पड़े। लेकिन छात्रों की यह मांग स्वीकार नहीं की गई।

विवाद खत्म और फाइनल परीक्षा पर लगी मुहर

आखिरकार परीक्षाओं पर छिड़ी बहस खत्म हुई और कोर्ट के निर्देशानुसार तय हुआ कि यूजी और पीजी की फाइनल ईयर की परीक्षाएं होंगी। इसके लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी ने ऑनलाइन ओपन बुक परीक्षा (ओबीई मेथेड) अपनाया तो वहीं अन्य यूनिवर्सिटी ने भी फाइनल ईयर की परीक्षाओं का ऐलान किया।

सत्र भी हुआ लेट

कोविड-19 महामारी और फिर इसके बाद बार-बार परीक्षाओं के शेड्यूल बदलने की वजह से आमतौर पर मई-जून में होने वाली यूजी और पीजी की फाइनल ईयर की परीक्षाएं अक्टूबर में शुरू हुईं। इसका नतीजा यह रहा कि सत्र लेट हो गया और इसकी वजह से स्टूडेंट्स को काफी भारी नुकसान उठाना पड़ा। फाइनल ईयर की परीक्षाएं समय पर नहीं होने और रिजल्ट नहीं आने से छात्र-छात्राएं नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सके तो कभी आगे की पढ़ाई के लिए बाध्य रहे।