सुप्रीम कोर्ट ने कहा सड़कें घुमावदार भी हो सकती है, इससे नहीं होते हादसे

घुमावदार सड़कों से वाहनों की रफ्तार कम रखने और दुर्घटनाओं में कमी लाने में भी मिलेगी मदद। शीर्ष अदालत ने सवाल किया कि सड़कों को चौड़ा करने के लिए पेड़ों को काटना या उन्हें सीधी रेखा में बनाना जरूरी क्यों है।

सड़क एवं अन्य बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए धड़ाधड़ पेड़ों की कटाई और क्षतिपूर्ति के तौर पर अन्य स्थानों पर वनीकरण करने की दलीलों पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को तल्ख टिप्पणियां कीं। शीर्ष अदालत ने सवाल किया कि सड़कों को चौड़ा करने के लिए पेड़ों को काटना या उन्हें सीधी रेखा में बनाना जरूरी क्यों है। सड़कें घुमावदार (जिगजैग) भी तो हो सकती हैं जिससे वाहनों की रफ्तार कम रखने और दुर्घटनाओं में कमी से लोगों की जिंदगी बचाने में मदद मिलेगी। साथ ही अदालत ने कहा कि पेड़ों का मूल्यांकन उनके जीवनकाल में की जाने वाली आक्सीजन आपूर्ति के आधार पर होना चाहिए।

प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने उक्त टिप्पणियां उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका पर कीं। मथुरा में कृष्ण गोवर्धन सड़क परियोजना के लिए 2,940 पेड़ों को काटने के संबंध में प्रदेश सरकार ने यह याचिका दाखिल की है। बोबडे ने राज्य सरकार से कहा कि वह इन पेड़ों का मूल्यांकन इस आधार पर करे कि वे अपने जीवनकाल में कितनी आक्सीजन की आपूर्ति करेंगे और तब उनके महत्व का आकलन करे। शीर्ष अदालत ने कहा, हालांकि लोक निर्माण विभाग (पीडब्लूडी) ने आश्वस्त किया था कि वह इतनी ही संख्या में दूसरे क्षेत्र में पौधरोपण करेंगे, लेकिन 90 वर्षीय पेड़ के स्थान पर एक हफ्ते का पौधा लगाने की कोई तुक नहीं है।

यह स्वाभाविक है कि अगर 90 या 100 वर्षीय पेड़ काटे जाते हैं तो उनका कोई क्षतिपूरक वनीकरण नहीं हो सकता। काटे जाने वाले पेड़ों की उम्र के संबंध में जानकारी या रिकार्ड के अभाव का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा, ‘सिर्फ गणितीय आधार पर क्षतिपूर्ति स्वीकार करना हमारे लिए संभव नहीं है, खासतौर पर तब जबकि उप्र सरकार या पीडब्लूडी की ओर से पेड़ों की प्रकृति को लेकर कोई बयान नहीं आया है कि वे झाड़ियां हैं अथवा बड़े पेड़।’ ‘यह साफ है कि अगर पेड़ों को बरकरार रखा गया तो इसका असर इतना होगा कि सड़कें सीधी नहीं होंगी इसलिए तेज रफ्तार यातायात संभव नहीं होगा। जरूरी नहीं कि यह प्रभाव हानिकारक हो।’

न्यायमित्र अधिवक्ता एडीएन राव ने कोर्ट को बताया कि नेट प्रेजेंट वैल्यू (एनपीवी) पद्धति से पेड़ों का मूल्यांकन किया जा सकता है। इस पर अदालत ने सरकार से एनपीवी पर विचार करने और दो हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा। बाद में मामले की सुनवाई चार हफ्ते के लिए स्थगित कर दी।