बदलाव : लगन और मेहनत से यहां के लोग बने पानीदार, World Water Day 2021

अब यहां समृद्धि है खुशहाली है और रोजगार हैं। स्थिति इतनी सुधर गई है कि इन इलाकों में गर्मियों के दौरान भी पानी की कमी नहीं दिखती। इससे कृषि उत्पादन व आय में अभूतपूर्व प्रगति हुई है। इस बदलाव पर एक नजर

एक समय सूखे के कारण देश के कुछ इलाकों की हालत काफी खस्ता थी। सिंचाई और पेयजल लगभग खत्म था, बेरोजगारी बढ़ी थी, महिलाएं दूरदराज क्षेत्रों से पानी लाती थीं और पलायन तेज था। बारिश की स्थिति यहां आज भी वैसी ही है, लेकिन लगन और मेहनत से यहां के लोगों ने प्रतिकूल परिस्थितियों को अनुकूल बना लिया।

इनमें से कई स्थानों में सालाना 250 मिमी से भी कम वर्षा होती है। लेकिन वर्षा जल संचयन ने इन इलाकों की तस्वीर बदल दी है। अब यहां समृद्धि है, खुशहाली है और रोजगार हैं। स्थिति इतनी सुधर गई है कि इन इलाकों में गर्मियों के दौरान भी पानी की कमी नहीं दिखती। इससे कृषि उत्पादन व आय में अभूतपूर्व प्रगति हुई है। इस बदलाव पर एक नजर :

अलवर, राजस्थान

350-450 मिमी: औसत वार्षिक वर्षा

1985 के हालात

किशोरी सहित कई गांव डार्क जोन थे। भूजल स्तर दो सौ फीट से भी नीचे था। महिलाएं दूरदराज के इलाकों से पानी लाती थीं। कृषि उत्पादन नगण्य था और युवा काम की तलाश में पलायन कर रहे थे।

बदले हालात

जलपुरुष राजेंद्र सिंह ने वहां वर्षा जल संचयन की मुहिम शुरू की। 1,058 गांवों में आठ हजार से अधिक जोहड़ (कुंड) बने और पौधारोपण किया। मानसून बाद ही सूख जाने वाली अरवरी नदी 1995 में सदानीरा बनी। अब वर्ष में तीन फसलें पैदा होती हैं। रोजगार बढ़े, 85 फीसद पलायन रुका। 70 गांवों के 150 लोगों ने अरवरी को स्वच्छ रखने के लिए एक संगठन बनाया है।

रालेगण सिद्धि, महाराष्ट्र

250-300 मिमी: औसत वार्षिक वर्षा

1980 के हालात

1,700 एकड़ भूमि में से सिर्फ 80 एकड़ भूमि पर सिंचाई संभव थी। पुरुष ईंट-भट्ठों में काम करने बाहर जाते थे। जो गांव में थे वे अवैध शराब बनाकर परिवार का पेट पालते थे। परिवार दिनोंदिन कर्ज में डूब रहे थे। शिशु मृत्यु दर अधिक थी।

बदले हालात

समाजसेवी अन्ना हजारे ने 18 साल पहले गांव में वर्षा जल संचयन की शुरुआत की। तालाब, चेक डैम और कुएं बनाए गए। आज 1200 एकड़ कृषि भूमि सिंचित हो गई है। किसान लाखों रुपये कीमत की तीन फसल प्रति वर्ष उगा रहे हैं। सब्जी, राशन और दूध भी बेच रहे हैं। गांव में चार लाख पौधारोपण हुआ। गांव में शराबबंदी हो गई है। गांव के बच्चे तालाबों में तैराकी सीखकर राज्य स्तरीय पुरस्कार जीत रहे हैं।

राज समधियाला, राजकोट गुजरात

300 मिमी से कम: औसत वार्षिक वर्षा

1985 के हालात

भूजल स्तर घटकर 250 मीटर तक पहुंच गया था।

बदले हालात

डिस्टिक्ट रूरल डेवलपमेंट अथॉरिटी कार्यक्रम से प्राप्त धन से ग्रामीणों ने करीब दो हजार हेक्टेयर भूमि पर 45 चेक डैम बनाए और 35 हजार पौधे रोपे। 2001 में गांव की आय 4.5 करोड़ हो गई। एक ही ऋतु में तीन फसलें उगने लगीं। इससे लोगों की आय तेजी से बढ़ी। 2003 में तो एक बूंद बारिश नहीं हुई, फिर भी भूजल स्तर बढ़कर 15 मीटर तक आ गया था। 1985 में मीठे पानी के बारहमासी कुएं दो थे जो 2002 में 14 हो गए। 1985 की तुलना में प्रति हेक्टेयर औसत आय 4,600 से बढ़कर 2002 में 31 हजार हो गई। गुजरात के इस गांव ने पानी और पर्यारण के बूते इस मुकाम को हासिल किया।

माहुदी, दाहोद गुजरात

830 मिमी (1999 में 350 मिमी): औसत वार्षिक वर्षा

1999 से पहले के हालात

गांव विकट जल संकट से जूझ रहा था।

बदले हालात

ग्रामीणों ने स्थानीय मचान नदी के मुहाने के आसपास बड़ी संख्या में चेक डैम बनाए। सिंचाई की उपयुक्त व्यवस्था की। सैकड़ों पौधे लगाए। वार्षिक कृषि उत्पादन 900 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से बढ़कर चार हजार क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो गया। साल में तीन फसलें उग रही हैं। पलायन घटा, पीने का स्वच्छ जल मिला। 1999 में सालाना औसत आय 35 हजार से ऊपर पहुंच गई। घर-घर में नल प्रणाली के जरिये पानी पहुंचाया गया। चारा बढ़ा तो दुग्ध उत्पादन बढ़ा।

गांधीग्राम, कच्छ गुजरात

340 मिमी: औसत वार्षिक वर्षा

2000 से पहले के हालात

पानी संकट से खेती में बाधा उत्पन्न होती थी।

बदले हालात

ग्रामीणों ने पांच बड़े चेक डैम, 72 छोटे चेक डैम और 72 छोटे-बड़े नालों का निर्माण किया। इससे 2001 में जब 165 मिमी वर्षा हुई तब भी गांव के तालाबों और अन्य जल स्रोतों में पानी उचित मात्र में मौजूद था। कुओं से ग्रामीणों को पानी नलों के जरिये मिलने लगा। किसान गेहूं, प्याज और जीरे जैसी नई फसलें उगाने लगे। रोजगार बढ़ा। बैंक से लोन लेकर ग्रामीणों ने एक बांध बनाया।

डेरवाड़ी गांव, अहमद नगर महाराष्ट्र

300 मिमी: औसत वार्षिक वर्षा

1996 के हालात

सूखा प्रभावित गांव में पीने और सिंचाई का पानी मिलने की संभावना कम थी। ठीकठाक बारिश के बावजूद कृषि उत्पादन काफी कम था।

बदले हालात

ग्रामीणों ने वन विभाग से प्रतिबंधित वन क्षेत्र में खेती करने की अनुमति ली। उन्होंने रिज टू वैली अवधारणा पर काम किया। किसानों को पानी मिलने लगा, जिससे वे विभिन्न फसलें उगाने लगे। रोजगार बढ़ा, डेयरी, नर्सरी, पॉल्ट्री क्षेत्र में विकास हुआ। गांव में महिला सहायता समूह बने।